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My Writings

काश कागज पर कलम ठीक से चल जाती ।

कागज पर कलम ठीक से चल जाती ,
तो शायद जिंदगी ही बदल जाती।
हर दिन ढलती शाम भी सुहानी सी नजर आती ।
जो कागज बहुत दिनों से बिखरे हुए थे ,
उनमें भी इत्र की खुशबू आती।
कुछ लम्हें, कुछ यादें फिर से बाहर आतीं।
काश कागज पर कलम ठीक से चल जाती ।
कुछ मुश्किलें भी आसान सी नजर आतीं,
कुछ मंजिलें बेहद नजदीक आ जातीं।
कुछ दोस्त भूले नहीं भूल पाते ,
कुछ की दोस्ती कमाल कर जाती ।
काश कागज पर कलम ठीक से चल पाती।

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15.

आऊंगा भीगी बरसातों में।

एक अरसा बीत गया है अंगड़ाइयां लेते लेते,
अब पलक झपकते ही नींद नहीं आती है ।
एक खामोशी का सा शोर है इस जमाने में ,
कुछ अधूरी सी बाते हैं इन पूरी किताबों में ।
चंद लम्हों में ही पूरा वक्त कट जाता है कभी,
कभी बात होती है वो भी सिर्फ तन्हा रातों में ।
महफिल न हो तो कभी मिलना ही न हो अपनों से,
वक्त मिलेगा तो आऊंगा भीगी बरसातों में।।

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14.

कभी कभी लिख भी लिया करिये।

एलिखना गुनाह नहीं है कभी कभी लिख भी लिया करिये,
आंसुओं से भीगी पलकों को जरा धुल भी लिया करिये ।
मालूम है वक़्त ने बेवजह मुलजिम बनाया है तुम्हें,
कभी कभी अकेले में सजा काट भी लिया करिये।
हर तरफ शहर में बेवजह शोर है दिखावे का जनाब,
आप अपनी कलम से इस शोर को मिटा तो दीजिये ।
बहुत दिन हुए तुम्हारे अल्फ़ाज़ सुने हुए उस ज़माने के,
फिर से उन अल्फाजों को कागज पर उतार तो दीजिये।

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13.

मैं वो करना चाहता हूँ ,जो में चाहता हूँ ।

मैं वो करना चाहता हूँ ,जो में चाहता हूँ ,
बस यही बात खुदको बताना चाहता हूँ |
चिराग-ऐ-रोशन भी होगा एक दिन देखना,
बस अपने दिल के दिए को जलाना चाहता हूँ |
प्रचंड अगर होगी जीत तो वो भी देख लेंगे ,
पर जश्न लेकिन मैं छुपके से मनाना चाहता हूँ ।
पता है मुझे कुछ भी साथ नहीं जाने वाला मेरे,
फिर भी मैं दूसरों के लिए बचाना जानता हूँ |
ख्वाहिश थी कुछ दिल में जिसका मलाल है मुझे,
फिर भी छोड़कर उसे मैं आगे बढ़ना जानता हूँ ।

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12.

है चाँद आसमान पर तो क्या हुआ

है चाँद आसमान पर तो क्या हुआ,पहाड़ों की चोटियों पर चढ़कर उसे देख लेता हूँ।
मिलता अगर रास्ते मैं भटका हुआ मुसाफिर ,तो गलियों मेँ उसको छोड़ भी देता हूँ।
होती है कठिनाई अगर मंजिल पाने मेँ मुझे, तो थोड़ा रुककर सोच भी लेता हूँ।
होता है संदेह अगर किसी पर तो थोड़ा मुस्कुराता हूँ फिर धीरे से पूछ भी लेता हूँ।
नज़र ना लग इसलिए नज़रअंदाज़ करता हूँ, फिर छुपके से देख भी लेता हूँ कभी।
घबराहट सी होती है कभी रात मेँ मुझे तो फिर मन बनाकर बात कर ही लेता हूँ।
महकती सी खुशबू अब नहीं आती है उस फूल से,पर किताबें खोल ही लेता हूँ।
गुजरता वक़्त कम है जीवन बनाने मेँ, फिर भी दिल मेँ जो आता है कर ही लेता हूँ।
सुनता सिर्फ अपने आपकी हूँ , लेकिन कोई दिल से कहता है तो मान भी लेता हूँ।
याद तो बहुत आती है गुजरे हुए कल की , पर आज मेँ भी मैं उन्हें जी लेता हूँ।
डरता हूँ गलती ना हो जाये फिर से ,लेकिन फिर से करके गलती मान भी लेता हूँ।
सोचता हूँ बहुत कुछ पाना है अभी, लेकिन खुद को बहुत कुछ मान भी लेता हूँ।
दिल को समझने के लिए उसमें डूबना पडता है, उसमें भी कश्ती चला ही लेता हूँ।

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11.

तू चन्द्र गगन पाताल मगन।

तू चन्द्र गगन पाताल मगन,तू अग्नि ज्वाला सी ज्योति है।
तू मृग नयन सी तेज सही,तुझमे ही सृष्टी बसती है।
भोरताल तु नृत्य कमाल,तू पग पग आगेे बढती है।
चाहता जिसे पूरा पृथ्वीलोक,तू हर उस कण में बसती है।
हो तीर से विध्वंस अगर,तब घाव सभी के भरती है।
तू माया है तू ही कदकाया है,भाव बिभोर सबको करती है।
पग एक बढ़ा उसकी ओर सही,आगे तोे चल उसकी डोर वही।
तू बंधमुक़्त, तु नाशमुक्त,तुजमें ही तो है प्रेमपुष्प।
विद्वान की है कलम भी तू,ज्ञान की पुष्तक सही।
तू पाठशाला है वेद की,गंगा की निर्मल धारा है तू ।
बहती जिसमें कश्ती सही,देश की पुकार तू ,माटी का है प्यार तू ।
अनंत गगन की चोटियों पर ,करती है वास तू ...।

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10.

मशाल जल रही ह्रदय में ।

मशाल जल रही ह्रदय में जो ,उस लपट को कैसे बुझाऊं मैं ।
है शोला जो दहक़ रहा ,कैसे सबको बताऊं मैं ।
पर्वतों की चोटियों पर ,पैर अपने कैसे बढाऊं मैं ।
उंगलियां हैं बर्फ सी जम गयी ,इनको कैसे मिलाऊं मैं ।
बेड़ियाँ हैं पैर में मेरे ,कैसे घाव को मिटाऊं मैं।
तकलीफों का नदी है भरी ,कैसे समुन्दर में जाऊं मैं ।
ढूंढ़ता हर जगह तुझे, है छिपा अंदर मेरे कैसे जान पाऊं मैं।
तू दे मुझे एक मौका अगर ,पहाड़ तोड़ लाऊँ मैं ।
जलती हुई मशाल से, बर्फ पिघला आऊं मैं।
है शोला जो दहक रहा ,हर हाल में बुझाऊं मैं ।
खोल दे बेड़ियाँ अगर ,हर घाव को मिटाऊं मैं ।
तकलीफों की नदी में भी कागज की कश्तियाँ बहाऊँ मैं ।
तू दे अगर पता मुझे ,अपने अंदर से ढूंढ लाऊँ मैं ।

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09.

मंजिल में कठिनाई ।

मंजिल में कठिनाई मिलेगी तो दिल खोलकर मिलना ,
चेहरे पर लेकर मुस्कराहट खुशिओं से उसे तोलना |
रह जाएगी पीछे दुनिया की हर मुश्किल डगर ,
बस तुम रूककर अपना हौसला कभी ना छोड़ना |
दुनिया की बुलंदी भी मिलेगी हर मोड़ पर तुम्हे ,
पर कभी अपने दिल की बुलंदी को ना भूलना |
सोचते रहोगे बड़ी ख़ुशी मिलेगी बड़े आसमानो पर,
लेकिन भूलकर भी अपनी जमीं को मत छोड़ना |
देर से सही खरे उतरना लोगों की उम्मीदों पर भी,
लेकिन अपनी उम्मीदों के पंख कभी ना तोड़ना |
तोड़ देना बेड़ियाँ ज़माने की बंदिशों की जो भी हो,
लेकिन अपने मन की बेड़ियाँ कभी ना छोड़ना !!

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08.

सफर में साथी की तलाश

सफर में हर वक़्त किसी साथी की तलाश थी ,
थकने पर मुझे बहुत गहरी पानी की प्यास थी।
दिन ढलने पर दुखता था कभी कभी दिल मेरा ,
लेकिन सुबह होने पर मुझे किरणों की तलाश थी ।
कोई साथी ना मिला राह मे तो थम सा गया मैं ,
ना जाने क्यों मेरे दिल में अब भी आस थी ।
मीलों का सफर है मेरा ये मैं बिलकुल जानता हूँ ,
गिरना उठना है हर कदम पर ये भी मैें मानता हूँ,
रहनुमा भी तू है मेरा खुशनुमा भी तू ही है मेरा ।
गिरते को उठाता भी तू और मिलाता भी तू है ,
ख्वाब को हकीकत बनाकर उड़ाता भी तू है ।
सफर के बाद तारीफ़ ना करूँ तो ही बेहतर है ,
क्यूंकि उसमे रुलाता भी तू और हँसाता भी तू है ।

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07.

समुन्दर के पार मैं तैर कर आया हूँ।

समुन्दर के पार मैं तैर कर आया हूँ , नीलगगन को चीर कर आया हूँ।
है हिम्मत मुझमेंअभी भी बाकी , हवाओं का रुख मोड़ कर आया हूँ।
ख्वाबों को हकीकत मैं बदलने, मैं हर और से लड़कर आया हूँ ।
कभी कभी वक़्त साथ नई देता ,वक़्त को भी पीछे छोड़ कर आया हूँ।
मौसम तो अब भी वैसा ही है,वादिओं की खुशबू को भूल सा आया हूँ।
बहुत हैं मुझसे ज्यादा मुझपर भरोसा करने वाले, पर उन्हें भी खो आया हूँ।
है वैसे तो गागर मुझपर भी सोने की ,उसमें भी गंगाजल छोड़ आया हूँ।
कुटुंब मेरी देती पवन शीतल अब भी, उस गाँव को भी मैं छोड़ आया हूँ।
ममता का स्पर्श चन्दन सा ,अब मैं चलता हूँ ये माँ को बोल आया हूँ।
पढ़ता था दिन रात जिस दीये तले, उसको भी जला छोड़ आया हूँ।
एक दिन लौटूंगा अपने विजय अश्व पर,सोच कर अपने को रोक पाया हूँ। ।

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06.

मैं लिखता हूं कभी-कभी।

वैसे तो मैं लिखता हूं हर दिन लेकिन दिल से लिखता हूं कभी-कभी
मैं याद तो बड़े इत्तेफाक से रखता हूं लोगों को लेकिन भूल जाता हूं अपने आप को कभी कभी ।
मन करता है पालू दुनिया की हर मंजिल लेकिन सुकून केवल अकेले में मिलता है ।
कभी-कभी दुनिया की भीड़ में जैसे मेरी एक अलग पहचान है लेकिन ना जाने क्यों उसमें गुम हो जाता हूं कभी-कभी ।
जमाना वैसे तो बहुत तकलीफ देता है लेकिन उसे भी नजरअंदाज कर देता हूं कभी-कभी ।
वैसे तो हर कदम पर बहुत खूबसूरत लोग मिलते हैं लेकिन वक्त का करिश्मा तो देखिए
उन्हें भी पीछे छोड़ आता हूं कभी-कभी।।

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05.

अब मैं थोड़ा समझदार हो गया हूँ।

अब मैं थोड़ा समझदार हो गया हूँ,जिम्मेदार हो गया हूँ
पहले जब समय कम था तो लोगों से बातें करते थकता नहीं था अब जब समय है तो बात करने का मन थोड़ा कम करता है !
रोज सुबह अकेले होने की होड़ में चंद जगहों को खोजता था की कहीं कोई परेशां ना करे लेकिन अब वो जगह तो वीरान है, लेकिन अनजान सी लगती है !
वैसे तो सुबह उठते ही मैं उस प्रदूषित वादिओं में भी खुलेआम सीना तान के घुमा करता था लेकिन आज जब हवा में अलग सी महक है मैंने अपना चेहरा ढककर रखना शुरू कर दिया !
पहले पढ़ता था सबके साथ तो दिन का पता तक नहीं चलता था और हर दिन अपने आप से मुकाबला बढ़ जाता था लेकिन अब पढ़ने में अब सुकून सा लगता है ।
लेकिन अब मैं समझदार हो गया हर साफ़ सफाई खुद ही कर लेता अपना . ख्याल घर से दूर रहकर भी रख लेता हूँ |
पहले इस भीड़ भरी दुनिया में चिडिओं की चहचहाहट कहीं दिखती ही नहीं थी आज हर सुबह नींद उन्ही की आहट पर खुलती है ।
हर बात पर किसी को टोकने वाला मैं अब अपने आपकी गलतिओं पर ज्यादा ध्यान दे रहा हूँ सायद मैं समझदार हो गया हूँ |
कुछ अपनी संस्कृतिओं और परम्पराओं को भूल सा गया था या यूं कहो मुझे पश्चिमी देशों के आकर्षण ने घेर लिया था , लेकिन अब लौट कर अपनी परम्परा पर गर्व . पहले कभी महसूस करता आया हूँ |
योग और प्राणायाम को कभी इतनी गंभीरता से नहीं किया मैंने लेकिन अब एक एक को बड़े ढंग से करता हूँ शायद में समझदार हो गया हूँ !
समय नहीं था तो सोचता था बहुत कुछ कर लेता अगर थोड़ा और समय मिल जाता तो आज समय है और करने को भी बहुत कुछ लेकिन कुछ कर नहीं पा . रहा हूँ मैं !
छोटे बच्चों को छत से खेलते देख सोचा करता था को काश में भी बच्चा बन जाऊं अगर समय रुक जाए तो आज वही दिन आ गया है लेकिन खेल भी नहीं . पा रहा मैं ।
विदेश में था तो माता-पिता से मिलने को तरस सा जाता था सालों तक लेकिन , आज अपने वतन तो हूँ लेकिन फिर भी मिल नहीं पा रहा हूँ मैं |

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04.

ये अपना देश है साहब।

ये अपना देश है साहब !!
जहाँ मेहमान को भगवान कहा जाता है और लेकिन अपनों को बेबस छोड़ दिया जाता है,
कुछ बड़े बड़े पैसे वाले लोग गलती तो बड़े शौक से करते है, लेकिन अंजाम गरीबों से चुकाया जाता है !
यहाँ पढ़े लिखे लोग अनपढ़ों जैसे काम करते हैं कभी कभी, कहीं से एक बिना पढ़ा लिखा इंसान इतिहास रचा जाता है।
यहाँ जशन की रात तो पूरा मोहल्ला खड़ा नज़र आता है ,लेकिन मुसीबत आने पर इंसान अकेला अपने आपको पाता है!
यहाँ जिसपर कम है वो दिल खोल कर दान करता है, और जिसपर बहुत ज्यादा है वो अपनी जेबों को और बड़ी करता है!
यहाँ त्यौहार तो बड़ी जशन से मनाये जाते ही है, लेकिन किसी के गुजर जाने पर भी पुरे गाँव को खाना खिलाया जाता है।
वैसे तो बहुत जाति और धर्म में बंटें हैं लोग यहाँ, लेकिन जब बात देश पर आती है उनमे भी एक हिंदुस्तान नज़र आता है

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03.

हाँ वो दौर फिरसे आएगा ।

यह दौर आने वाले दौर को बहुत कुछ देकर जाएगा ,कुछ बातें बताएगा ओर बहुत कुछ सीखा कर जायेगा!
एक शहर था जो वीरान हो गया , अपनी ही खुशनुमा गलियों में वो खुद ही सुनसान हो गया !!
किसी की यादें हमारे जेहन में तड़पेंगी ,तो किसी की हंसी के लिए हम तरसायेगा।
बहुत सी दोस्ती अधूरी रह जाएंगी इस दौर में ,ओर कुछ अधूरापन सा होगा दोस्तों में हो जायेगा।
कुछ लोग अपने मुकाम को पाकर भी थम से गये होंगे, तो कुछ बिना मुकाम के भी मिलों चलते रहे होंगे !!
बहुत सी ख्वाहिशें थी जिन्हें पूरी करनी थीं ,कुछ सपने थे जिन्हें रंग देने अभी बाकी हैं !!
लेकिन इस दौर के बाद वो दौर फिर से आएगा ,शहर की उन सुनसान गलियों में फिरसे रौनक लाएगा!!
जन्म लेते ही लड़ने वाला बच्चा अपनी कहानी सबको सुनाएगा,ओर कुछ लोगों के लिए पूरा देश ताली बजायेगा।
हाँ वो दौर फिरसे आएगा ।

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02.

जिंदगी की उलझन।

जिंदगी की इस उलझनों में जब हम आये ,तो कुछ लोगों ने हमें बहुत प्यार दिया !
थोड़े बड़े हुए तो लोगों ने नादान कहकर हर गलती पर छोड़ दिया ,
मानो जैसे कांच क महलों को तोडा और एक खरोंच तक नहीं आयी |
उम्र बढ़ती गयी और कुछ हाथ ना लगा ,
तो लोगों ने हमें नकारा कहकर छोड़ दिया !
अच्छा लगा कुछ लोगों ने हमें पहचाना तो सही ,
फिर एक दौर शुरू हुआ ,कुछ कर दिखाने का
बहुत कुछ खोया उस समाया में ,लेकिन उससे ज्यादा पा चुके थे ,
अब लोगों ने हमें समझदार कहना शुरू कर दिया |
लेकिन सब कुछ यहीं ख़तम नहीं हुआ,
उम्र बढ़ती गयी और लोगों के बयान बदलते रहे ,
और लोगों के बयान के साथ साथ हम भी अपने इरादे बदलते रहे ,
और ये मौसम ऐसे ही बदलता रहा !!

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01.

Thank you for reading !!

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